धान की खेती
धान (Paddy / ओराय्ज़ा सैटिवा) एक प्रमुख फसल है जिससे चावल निकाला जाता है। यह भारत सहित एशिया एवं विश्व के बहुत से देशों का मुख्य भोजन है। विश्व में मक्का के बाद धान ही सबसे अधिक उत्पन्न होने वाला अनाज है।
धान की खेती की पूरी जानकारी
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- धान खेत की तैयारी कैसे करें
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- बीजों का चयन कैसे करें
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- बीज की मात्रा क्या होगी
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- खाद क्या मात्रा होगी और कब देना है
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- निंदा नाशक का प्रयोग
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- धान में लगने वाले रोग और उनका नियंत्रण एवं अन्य संपूर्ण बातें
धान की खेती की तैयारी
धान की खेती की तैयारी करने के लिए खेत की अच्छी तरह से तो दो-तीन बार जुताई कर के खेत को बराबर करने और विशेष यह कि मेरे को भी साफ रखें क्योंकि अधिकतर कीड़े और बीमारी का प्रकोप किन्नरों से ही अपने खेत में होता है अगर आपने रवि फसल ली है तो ग लाइफ ग्लाइफोसेट नामक खरपतवारनाशी का प्रयोग कर खरपतवार प्रबंधन कर लेना चाहिए और जिन किसानों के मेड़े साफ रहते हैं उनकी फसल में आपको बीमारी नजर नहीं आएगी
अगर आपने रबी फसल नहीं है तो गलायफोसेट खरपतवार नाशी का प्रयोग कर खरपतवार प्रबंधन कर ले
बीजो का चयन
बीजो के चयन के लिए दो बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए अगर आपको आगे होने वाली परेशानियों जैसे बीमारी कम उपाय अंकुरण में समस्या आदि से बचना है तो इन चीजों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है
1) बोनी के पूर्व बीजो को 17 % नमक खोल से उपचारित करें इसमें आपको 100 लीटर पानी लेना है और उसमें 17 किलो नमक को खोलना है औऔर घोल तैयार है कि नहीं इसकी पुष्टि करने के लिए गोल में अंडा डालकर देखने घोल तैयार होने पर अंडा ऊपर तैरने लगेगा और आपने बोनि के लिए जो बीज रखे हैं उसे इस नमक पानी के घोल में डाले और जो भी ऊपर तैर रहे हैं उसे अलग कर ले यह वे बीज है जिसमे अंकुरण नहीं आने वाला है
यह जो आप की फसल खराब करने वाले हैं अब चीजों को साफ पानी में धोकर छाओ में सुखा ले जो बीज पानी के ऊपर करते हुए दिखाई देते हैं उनमें या तो अंकुरण नहीं आएगा या यह रोग से ग्रसित होते हैं जो आपकी फसल को भी खराब कर सकते हैं
2 बीजोपचार : बीज उपचार जिस तरह से हम बच्चों को टीका लगाकर बीमारी से बचाते हैं उसी प्रकार बीच को भी टिके की आवश्यकता होती है फफूंद जनित रोगों से बचाव के लिए टिका जरूरी है
फफूंद जनित रोगों से बचाव के लिए
कार्बेंडाजिम या मैकोजेव या बेनोमिल-2 ग्राम प्रति किलो बीज ये आपके फल का बचाओ करेगा झुलसा ( blast) रोग भूरा धब्बा ( brown spot)
2 पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए
पोषक तत्व स्थिरीकरण हेतु
1 नेत्रजन स्थिरीकरण हेतु – राइजोबियम एजोटोबेक्टर और इजोस्पाइरोल 250 ग्राम प्रति 10 से 12 किलोग्राम बीज
2 फास्फोरस विलियन हेतु – सीएसवी फास्फोबैक्टीरिया 250 ग्राम प्रति 12 किलो ग्राम बीज
3 पोटाश स्थिरीकरण हेतु – पोटाशिक जीवाणु 250 ग्राम प्रति 10 से 12 किलोग्राम बीज
बीज उपचार जरूर करना चाहिए इससे आपको बहुत फायदा मिलेगा यह जरूरी होता है
उपयुक्त भूमि के प्रकार
मध्यम काली मिट्टी एवं दोमट मिट्टी उपयुक्त पर भाटा जमीन को छोड़कर सभी भूमि में खेती की जा सकती है
बीच की आवश्यकता
किसान जहां पर 100 किलो बीज लगता है वहां डेढ़ सौ 200 बीज कर देता है
यह कोई मतलब नहीं होता है जरूरत से ज्यादा बीजों का उपयोग ना करें
धान की बीच की मात्रा बुआई की पद्धति के अनुसार अलग-अलग रखी जाती है
जैसे
छिड़काव विधि मे – 40 45 kg
कतार बोनी – 30 35
लेही पद्धति में – 28 – 30 किलो
रोपा मे – 10 12 kg
श्री विधि – 5 kg
श्री विधि में बोनी के लिए 5 किलो बीज की आवश्यकता होती है
बुवाई का समय
वर्षा प्रारंभ होते ही धान की खेती की बुवाई का कार्य प्रारंभ कर देना चाहिए जून मध्य से लेकर जुलाई प्रथम सप्ताह तक बोनी का समय सबसे उपयुक्त होता है यह धान बुवाई का सबसे अच्छा समय होता है
खाद एवं उर्वरक
हरी खाद का उपयोग
हरी खाद के लिए सनई या ढेंचा का बीज 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से रोपाई के 1 महीने पहले होना चाहिए लगभग 1 महीने की खड़ी सनई की फसल को खेत में मताई करके मिला देना चाहिए उसके बाद ही रोपा करना चाहिए इससे आपकी मिट्टी की क्वालिटी और अच्छी हो जाएगी
जैव उर्वरकों का उपयोग :- धान में एजोस्पिरिलियम या एजोटाबेकटर एवं पी एस बी जीवाणुओं की 5 किलो ग्राम मात्रा लेकर 40 से 50 किलोग्राम सुखी सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर खेत में अच्छी तरह मिला दे धान के रोपा खेत में ( 20 दिन रोपाई के उपरांत) 15 किलोग्राम हेक्टेयर नील हरित काई का भूरकाव 3 सेमी पानी की तरह रखते हुए करे । धान की खेती
रसायनिक उर्वरकों के उपयोग की मात्रा और समय
रोपाई के समय नत्रजन की आधी मात्रा 50% तथा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा डाली जाय। शेष नत्रजन की मात्रा दो बराबर भागों में कल्ले या कांसे निकलते समय 25% है। समय तथा गभोट या गोभ बनते (बूटिंग) समय 25% टॉप ड्रेसिंग के रूप में प्रयोग करना चाहिये
उर्वरकों के उपयोग का समय व तरीका रोपाई के समय नत्रजन की आधी मात्रा 50% तथा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा डाली जाय। शेष नत्रजन की मात्रा दो बराबर भागों में कल्ले या
कांसे निकलते समय 25% है। समय तथा गभोट या गोभ बनते (बूटिंग) समय 25% टॉप ड्रेसिंग के रूप में प्रयोग करना चाहिये
• धान में लगने वाले रोग नियंत्रण
1 झुलसा या ब्लास्ट रोग
यह फंगस जनित रोग होता है जिसका नाम पाईरीकुलेरिया ग्रीसिया है यह पौधों को काली कर देती है और फसल को टूट कर गिरा देती है क्या पौधों के लिए बहुत हानिकारक होता है
नियंत्रण
स्वच्छ से खेती करना आवश्यक है खेत में पड़े पुराने पौधे अवशेष को भी नष्ट करें
रोग रोधी किसमें का चयन करें जिससे आदित्य ir 64 कर्मा मसूरी तुलसी आदि
बीज उपचार करें बीज उपचार ट्रायसायक्लाजोल या कोर्बेन्डाजीम अथवा बोनोमील – 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की मात्रा से घोल बना कर 6 से 12 घंटे तक बीज को डुबोये, तत्पश्चात छाया में बीज को सुखा कर बोनी करे
खड़ी फसल के रोग के लक्षण दिखाई देने पर ट्रायसायक्लाजोल 1 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति ली. या मेन्कोजेब 3 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव 12 से 15 दिन में छिड़कव करें या
टेबुकोनजोल 25% ec का प्रयोग करें
जीवाणु जनित झुलसा (बैकटेरियल लीफ ब्लाइट) रोग के लक्षण बोनी या रोपाई के 20 से 25 दिन बाद दिखाई देते है इस रोग में पौधे की नसों के बीच पारदर्शिता लिये हुये लंबी-लंबी धरिया पड़ जाती है।, जो बाद में कत्थई रंग ले लेती है।
नियंत्रण
बोनी पूर्व बीजोपचार स्ट्रेप्टोसायक्लीन 5 ग्राम/ 10 kilo बीज के लिये
रोग होने की दशा में खेत से अनावश्यक पानी निकाल दे और 10 किलो पोटाश प्रति एकड़ के हिसाब से खेतो में डाले इसके लिये कोई रासायनिक उपचार प्रभावकारी नहीं है
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